(^30) YOGA AND TOTAL HEALTH • February 2018
इसका जबाव तो ्ही है कक हम भरी
मोह में फंस जाते हैं, संवेदनशरील बन
जाते हैं तजससे कत्तव् परीछे छू्ट जाता
है। हमें अपने शरीर का मोह, पररवार का
मोह, पतत, पत्न, पुत्र, पुत्ररी, माँ, बाप,
भाई, बहन सबका मोह है। अपने नाम
की प्तत ष्ा, जातत, कुल, पैसा, संपत्ति व
समसत भौततक चरीजों से बहुत लगाव है
और ्े सारी चरीजें हमारे मन की तसथितत
को असंतुसलत करतरी हैं। अपना कत्तव्
करने से गुमराह करतरी हैं।
मोह में आकर हम जो भरी कम्त करते
हैं, वह हमें सुख ्ा दःख ही देता है। ु
इनहीं सुख व दःख के अनु ुभवों में पूरा
जरीवन चला जाता है न तो हमें जरीवन का
सचचा आनंद समलता है और न ही आनंद
के अंदर छुपे हुए भगवान समल पाते हैं।
हम अपना कत्तव् तब कर पा्ेंगे जब
हम शांत और तसथिर बनेंगे।
आनंद व तसथिरता पाने के सल्े हमें
गुरूजरी की शरण में जाना पडेगा। आओ
साथि में प्ाथि्त ना करें कक गुरू हमारे मन
को शांत व तसथिर रखने में सहा्ता
करें। गुरू में ही ्ह ताकत है और वो
करूणाम्री हैं।
कुरूक्ेत्र के मैदान में कौरव और पांडव
का ्ुद््ध तनत्चत हो चुका थिा, दोनों
सेना्ें आमने सामने आ चुकी थिरी। ्ुद््ध
के शुरू होने की शंख धवतन बज चुकी
थिरी। तब वरीर ्ोद््धा अजु्तन ने श्री कृषण
भगवान से कहा – हे अच्ुत! मेरे रथि
को दोनों सेनाओं के बरीच खडा करो, वहाँ
जाकर अपनरी आँखों से सब कुछ देखकर
वरीर अजु्तन ने ्ुद््ध नहीं करने का फैसला
ले सल्ा। क्युँ?
क्ोंकक सामने अपने त्पतामह, गुरू,
बुजुगगों और भाई्ों को देखकर मोहां्ध
हो ग्ा। गांडरीव गगर ग्ा, मन उदास
हुआ। सोचने लगा- जरीवन से म््ृ ु बेहतर
है, सुख से दःख अचछा है और सवग्तु से
नरक भरी सुंदर है, ककंतु ्ुद््ध जो कक एक
क्त्त्र् का ्धम्त है उसे न करने का तनण्त्
करके बै ् ग्ा। क्युँ?
्ुद््ध के मैदान में ्ुद््ध करना ही
परम कत ्तव् है, ्ह बात अजु्तन भूल
ग्ा। वैसे ही हम सब भरी अपना कत्तव्
भूल जाते हैं। अपने ्धम्त (duty) को
छोडकर कुछ अलग सोचने लगते हैं, और
अलग ही करने लगते हैं। क्युँ?
आभा भट्ट
अविद् ा अरयजुनविषाद ्ोग
श्रीमद भगिद गरीता
अध्ा् 1
ron
(Ron)
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