YOGA AND TOTAL HEALTH • February 2018^33
में रजस की प्बलता होतरी है तो उतिेतजत
अवसथिा में का््त करता है और जब
स्व की प्बलता होतरी है तो एकाग्र,
ध्ानावसथिा में का््त करता है। ्हाँ
ऐसरी अवसथिा में आध्ात्मक ज्ान पर
गचनतन, मनन-अनुभव संभव हो जाता
है। स्व की प्बलता के कारण ्ह गचति
तनषकाम कम्त कर सकता है।
गचति एक अवसथिा में अग्धक सम्
तक रह नहीं पाता, रजस के हावरी होते
ही असंतुसलत, उतिेतजत हो जाता है पर
स्व अवसथिा के अचछे अनुभव कर पाने
के कारण वापस प्््न करता है कक उस
अवसथिा मे जाए, रहे व आंतररक शांतत
अनुभव करे।
उपरोकत गचति की तरीनों अवसथिाएँ
व्ुत्थित गचति के नाम से भरी जानरी जातरी
हैं। इन तरीनों गचति अवसथिाओं में बाहरी
भौततक त्व््ों का गचति पर तनरनतर
प्भाव पडता ही रहता है।
- एकाग् भूसम– ्ह गचति की स्व प््धान
(रजस और तमस दबे हुए) अवसथिा है
तजसे एकाग्र भूसम के नाम से जाना जाता
है। ऐसरी अवसथिा में गचति तनम्त ल व शांत
हो जाता है, ्हाँ ससफ्त एक ही प्कार
की वृत्ति्ों का प्वाह चलता रहता है।
गचति एक त्व्् पर लंबे सम् तक
तसथिर रह पाता है। एक ही त्व्् से
समबतन्धत वत्ति्ाँ उभरतरी व दबतरी रहतरी ृ
हैं। ्हाँ तक कक सवपनावसथिा में भरी गचति
की एकाग्रता बनरी रहतरी है। ऐसा गचति
आध्ात्मक ज्ान के सल्े उतिम माना
जाता है, इस गचति में सूक्म त्व््ों पर
व तमस से हुआ है। इन तरीन गुणों पर
आ्धाररत गचति की का््त करने की पाँच
अवसथिाओं का वण्तन व्ास मुतन में बहुत
ही खूबसूरत रूप से कक्ा है-
- क्षिपत भूसम– रजस गुण की प्बलता
के कारण (तमस एवं स्व दबे हु्े)
्ह अ््नत चंचल व अतसथिर गचति है
जो सांसाररक त्व््ों में उलझा रहता है,
उतिेतजत अवसथिा में का््त करता है। एक
साथि अनेक का््त करने के प््ास में एक
काम ख्म होने से पहले, दसरे का््त मू ें
व्सत हो जाता है। इस गचति में राग-
द्वे् तनरनतर उभर कर आते हैं। नाम,
दौलत, समपत्ति, ओहदा, शतकत आरद
प्ापत करने में लगा ्ह गचति ्धै््त वान
नहीं होता। इस गचति में आध्ात्मक
त्व््ों पर ध्ान केतनरित करना, सूक्म
त्व््ों को समझना ्ा जरीवन में उतारना
कर्न है।
- मूढ़ भूसम– तमस गुण की प्बलता
के कारण (रजस व स्व दबे हु्े) इसे
मूढ़ भूसम के नाम से जाना जाता है।
मूढ़ ्ातन गचति की आलस्पूण्त , तनरिा-
तनरिा वाली तसथितरी तजसमें काम-क्रो्ध,
लोभ-मोह प्बल रहते हैं। ्ह गचति एक
रदशाहीन गचति की भांतत का््त करता है व
आध्ात्मक त्व््ों में रूगच कम रखता
है ्ा के तनरित नहीं कर पाता।
- विक्षिपत भूसम– गचति की तरीसरी भूसम
जो कभरी चंचल (रजस गुण की प््धानता
से), तो कभरी तसथिर-एकाग्र अवसथिा (स्व
गुण की प््धानता से) त्वक्क्पत भूसम के
नाम से जानरी जातरी है। जब इस गचति