(^36) YOGA AND TOTAL HEALTH • February 2018
मन को प्सननगचति रखने का माध्म
त्वकससत करना चारहए। सभरी दःखों के ु
दौरान भरी मन को प्सनन रखने की
क्मता होनरी चारहए। इसके सल्े हमें
व्वतसथित ्ोग के प्सशक्ण व अभ्ास
की आव््कता होगरी।
जरीवन नदी के संगम के समान है जहाँ
पर दो प्कार के प्वाहसत्रोत समलते हैं।
एक नकारा्मक और दसरा सकारा्मक ू
सत्रोत। ्े दोनों ही सदा हमारे जरीवन में
उपतसथित रहते हैं, परंतु हमारा चुनाव
सकारा्मक प्वाह के साथि बहते जाने का
ही होना चारहए।
जरीवन में बहुत सारी बातें हमें दुःखरी कर
सकतरी हैं, परंतु उसरी पररतसथितरी को बदले
हुए नजररए से देखने पर हम दुःख और
परीडा से ऊपर उ् सकते हैं। ररफले कशन
द्वारा हरेक पररतसथितरी को साक्री भाव से
देखते हु्े त्वपरीत तसथितरी को समझकर
समभाव रखना सरीखते हैं। इसे तनरंतर
समझदारी के साथि जरीवन में उतारने
की आव््कता है। इन पररतसथितत्ों में
हमें अपने आप पर तनं्त्रण रखना बहुत
जरूरी हो जाता है।
हमारे जरीवन की पहली प्ाथिसमकता
उतिम सवास्थ् होना चारहए। कभरी भरी
एकाएक हमारा सवासथि खराब नहीं होता
है। शरीर सबसे पहले संकेत देता है, ्रद
शुरू में ही छो्ट े-मो्ट े दद्त को अनुभव
करके उनके प्तत जागरूकता लाकर,
तनदान कर लें तो हम सवासथि का बेहतर
ख्ाल रख सकते हैं। सुबह उ्ते ही हमें
शरीर में होने वाली परीडाओं पर ध्ान
देना चारहए। अकसर हम इसकी उपेक्ा
कर देते हैं। रदनच्ा्त के कामकाज में
व्सत रहने पर सा्धारण हलनचलन से
हमारे शरीर के दद्त ्ीक तो हो जाते
हैं, परंतु का््त पूण्त होते ही हम दद्त का
अनुभव कफर से करने लगते हैं। सम्
बरीतने के साथि-साथि वह दद्त भरी सथिा्री
रूप ले लेता है और गर््ा ्ा जोडों में
सूजन के रूप में उभर कर आता है।
शरीर के दद्त ्ा तनाव का सत्रोत हमारी
बुद्ग्ध है। खखंचाव का दद्त हमारे तंत्त्रका
तंत्र से होते हुए मतसतषक तक जाता है।
हमारे सभरी तनाव, डर, अ्धरीरता, गचंता,
व्ाग्रता, कष्ट मनोकात्क परेशातन्ाँ
उ्पनन करते हैं। ्ही मनोकात्क
तसथितरी परीडा को बढ़ाकर त्बगाड देतरी है।
हमारा मन व शरीर अद्त्वतरी् है। हमें
रागरूकता और परीडा
हंसाररी के भाषण का सारांश
- ््ोनत सोनरी दिारा अनयिाददत