स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

ώववेक दीΥƶत


एक दन जड़ने क कोशश कर रहा ँ ।

यूँ भी ज़द करने क कोशश कर रहा ँ ।
टू ट कर जुड़ने क कोशश कर रहा ँ ।
पंख ज़ी , बाज़ पीछे , तेज़ बारश ,
और म उड़ने क कोशश कर रहा ँ ।
ज़गी के इेहां म ा लखू?
बस सफ़े भरने क कोशश कर रहा ँ ।
सांस तो दुनया ही लेती है मगर ,
म ँ जो जीने क कोशश कर रहा ँ ।
कत के गाल पर करा तमाचा ,

गज़ल

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