अΥभजीत भȸ
- --अ भजीत भ
ऐ मानव,
अब रोक भी द न,
तर और वकास,
के नाम पर,
कृ त का दोहन।
कल-कारखान के धुओं म ,
लोग के दम घुंट रहे ह ,
जंगल न कये जा रहे ह
हवाओं म जहर घुल गया है,
जनसं ा बढ़ रही है,
संसाधन घट रहे है,
महामा रयां बढ़ रही है,
लोग घर म कै द हो गए ह ।
हमन कृ त के साथ कभी भी,
ायसंगत वहार नह कया,
फलतः यह दन देखने को मला।
लोग म भीषण ासदी मची है।
हम इन बात से सबक लेकर
रोकनी है उन सारी ग त व धय को,
जो पृ ी के सभी जा तय के लए,
तकू ल प र तयां पैदा कर रहे ह ,
ǹकृ Ϗत