स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

अΥभजीत भȸ



  • --अभजीत भ


ऐ मानव,
अब रोक भी द न,
तर और वकास,
के नाम पर,
कृ त का दोहन।

कल-कारखान के धुओं म,
लोग के दम घुंट रहे ह,
जंगल न कये जा रहे ह
हवाओं म जहर घुल गया है,

जनसंा बढ़ रही है,
संसाधन घट रहे है,
महामारयां बढ़ रही है,
लोग घर म कै द हो गए ह।

हमन कृ त के साथ कभी भी,
ायसंगत वहार नह कया,
फलतः यह दन देखने को मला।
लोग म भीषण ासदी मची है।

हम इन बात से सबक लेकर
रोकनी है उन सारी गतवधय को,
जो पृी के सभी जातय के लए,
तकू ल परतयां पैदा कर रहे ह,

ǹकृ Ϗत


पृ संया 10

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