झ रयागादी, ग रडीह रेलवे ेशन
जला- ग रडीह,झारखंडधीरज कु मार पाठक
हम जानते थे क,हमारी भी कहानी के ,आखरी प े,आँसुओं से लखी जाएगी,और फर द न हो जाएंगे,व के क म ,हमेशा के लए,हमदोन के क े।यह दल आज भी,त ाई म ढलते चांद म ,अ तु ारा ढूंढता है।आज भी तु ारी आहटटकरा कर मेरे दय- तज से,तु ारी ारी त ब बना जाती है।बेमुȱमल दाΒां