नई द ी
सं˞ा नंदी
ले कन कँ हा जी?
हम नह सुधर गे का नारा लेकर खड़ा हो गया इंसान
जँहा जगह मली , जँहा मौका मला
आँख तरेरते आ गये सारे के सारे
क हम से बढ़ कर कौन?
जो होते थे कु कम कभी छु प - छु प कर
होने लगे ह अब खुलेआम
ना परदा रहा नयन का
ना शम ओ हया रही आचरण म मया दा का रह गया
सफ नाम