स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

अΥमत Υमȁ


_____ अमत म

बात मान लो मेरी तुम
नही रह पाओगी मुझ बन
जब चला जाऊं गा म
खोजोगी मुझे तुम पागल जैसी
कभी बहार म कभी नजार म
कभी इन चांद सतार म
करोगी याद मुझे हर शाम म
लखोगी नाम मेरा हर नाम म
तुम देखोगी आईना नज़र मै ही आऊँ गा
ब करोगी आँखे जो तो मै ही मुाऊँ गा
लोगी नाम कसी का नाम मेरा ही नकलेगा
आँख के रे से दद पघल के बखरेगा
हर पल मुझको ही सोचोगी
और मुझको ही तुम गाओगी
खत मेरे लगा के अपने होठ से
उे बार बार दोहराओगी
बात मान लो मेरी तुम
न जी पाओगी मुझ बन
जब चला जाऊं गा म
फर लौट कभी न आऊं गा म।

मेरी याद

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