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देवेˮ कु मार
मै ढहाना चाहता ं उस दीवार को
और बनाना चाहता ं
एक ऐसा घर संसार
जसके हर कमरे म आती रह
नव वचार क रोशनी
जस रोशनी से उ त और
ेम के नव माग श हो सक
म लखना चाहता ं
हर उस मान सकता के खलाफ
जो अ भ को आजादी को
देश ोही का नाम देकर
दबा देना चाहती है
म लखना चाहता ं
उस व ा के खलाफ
जो ल ग, े , और भाषा के
आधार पर पैदा करते है आपसी मतभेद
म लखना चाहता ं
उन मासूम क लय के लए
जो आए दन होती रहती है शकार
कसी वकृ त मान सकता क
और लखना चाहता ं
उन लोग के खलाफ
जो दु म य के समथ न म
उठ खड़े होते है धम और राजनी त क पताका लए
म लखना चाहता ं
उस ाय णाली के लए
जो हो चुक है इतनी जज र
क उसक दरार म से
अपराधी नकाल लेते है
बचने का रा ा
म जगाना चाहता ं
हर उस को
जा त, धम , भाषा, राजनी त
क चादर ओढ़े
अपने आने वाले भ व से अंजान
गहन न ा म सोये ए है
मκ βलखना चाहता χं
नई द ी
श त ातक अ ापक (TGT
HINDI) द ी सरकार
म लखना चाहता ं
क म बयां करना चाहता ं
अपने अंदर उमड़ते वचार के सागर को
म चाहता ं जागृ त लाना
स दय से सोये लोग म
म मटा देना चाहता ं
उस लक र को जो जुदा करती है
आदमी को आदमी होने से
जो खड़ी करते रहते है
जा त, धम , े , भाषा क दीवार