स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

9582702387


देवेˮ कु मार

मै ढहाना चाहता ं उस दीवार को
और बनाना चाहता ं
एक ऐसा घर संसार
जसके हर कमरे म आती रह
नव वचार क रोशनी
जस रोशनी से उत और
ेम के नव माग श हो सक

म लखना चाहता ं
हर उस मानसकता के खलाफ
जो अभ को आजादी को
देशोही का नाम देकर
दबा देना चाहती है
म लखना चाहता ं
उस वा के खलाफ
जो लग, े, और भाषा के
आधार पर पैदा करते है आपसी मतभेद

म लखना चाहता ं
उन मासूम कलय के लए
जो आए दन होती रहती है शकार
कसी वकृ त मानसकता क
और लखना चाहता ं
उन लोग के खलाफ
जो दुमय के समथन म
उठ खड़े होते है धम और राजनीत क पताका लए

म लखना चाहता ं
उस ाय णाली के लए
जो हो चुक है इतनी जजर
क उसक दरार म से
अपराधी नकाल लेते है
बचने का राा

म जगाना चाहता ं
हर उस को
जात, धम, भाषा, राजनीत
क चादर ओढ़े
अपने आने वाले भव से अंजान
गहन ना म सोये ए है

मκ βलखना चाहता χं


नई दी
शत ातक अापक (TGT
HINDI) दी सरकार

म लखना चाहता ं
क म बयां करना चाहता ं
अपने अंदर उमड़ते वचार के सागर को
म चाहता ं जागृत लाना
सदय से सोये लोग म
म मटा देना चाहता ं
उस लकर को जो जुदा करती है
आदमी को आदमी होने से
जो खड़ी करते रहते है
जात, धम, े, भाषा क दीवार
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