स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
हसामपुर, जौनपुर, उरदेश

आयाǢ यादव

दन - रात ह गुजर जाने के लए।

गाँव जाने के लए
शहर जाने के लए,
चल रहे ह सभी मुसाफर
अपने-अपने घर जाने के लए।
धूप और थकन से
हम कतने भी परेशान ह,
छाँव होती है ठहरने के लए
न क ठहर जाने के लए।
उदास न हो पथक
पथक से बछड़ जाने पर,
पथ होते ही ह ऐसे
इधर - उधर जाने के लए।
चलना है कतनी देर
जाना है कतनी दूर,
यह बस आया समझती है

मुसाώफ़र


थोड़ा सा रोज म नखं ।

मेरे जो हौसले ह
उनके पंख क तू ताकत बन,
जदगी के उड़ान म
बढ़ूँ आगे, ना म ठहं ।
म मोती ँ तेरा हमदम
तू मेरे ार का धागा,
समेट कर तू रखे मुझको,
कभी भी यूँ ना म बखं ।
नादाँ सी आया क ये
छोटी सी बस ाहश है,
थोड़ी सी म जवाँ होकर,

तुझी से ार है मुझको,
तुझी से रोज म झगड़ूं,
तू मेरा आईना बन जा
तुझे मै देख कर संवँ ।
तेरे ाब के जहां म
गर कोई सरकार चलती है,
बनके उस मु का झंडा
तेरे दल म म फहं ।

मेरे जो हौसले हκ

Free download pdf