स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

मंजु लोढ़ा


मेरे सखा, सपना मेरा सच हो जाता...।

मेरे लाड़ले भगवान,
कल ूं नह आए मेरे सपने म...
आते तो जीवन खल जाता, मेरा सखा मुझको मल
जाता,
म तरस गई तेरे दरशन को।
बडा सुर था...,
पवन थी ठंडी ठंडी सी,
और मोगरे क गंध भी,
चमक रही थी चांदनी,
और रातरानी क सुगंध भी,
के सर क कई ारीयां थी,
शोभा भी वहां क ारी थी,
झूला था, बगया सलोनी थी,
वहां बस बटया म तुारी थी।
आते ही तुमको झुला देती,
मां बनकर लोरी सुना देती,
चताए तुारी हर लेती,
खुद को भी ध म कर लेती।
भटका इंसान जा रहा कह,
कोई चता तुझको ह क नह,
लेकन तुझको अब भी है वास,
मानवता रहेगी जदा
इसीलए तेरे होठ पर शरारती मुान है,
ले रहा है परीा अपने भ क,
पर हरदम उनके साथ ह।
नह आए कल सपने म...
आते तो जीवन महक जाता,

Ɉूं नहα आए सपने मη

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