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' ण म दप ण' प का दवंगत ए महान सा ह कार के त अपनी शोक-स ेदना कट करते ए यं को डॉ कुँ वर
'बैचन' के पद च का अनुकरण करने के लए ढ़संक लेती है।
सा ह ाकाश के सबसे चमकते तारे तथा जाने-माने स गीतकार के प म हमने एक ऐसे श को खो दया है
जसक त-पू त कसी भी क मत म गैर-मुम कन होगा।
जी,हाँ!हम बात कर रहे ह डॉ. कुँ वर 'बैचेन' क जनक अनायास मृ ु ने हम सभी को बेचैन कर दया है।
डॉ 'बैचैन' का ज 1 जुलाई 1942 को उ र देश के जला मुरादाबाद के ाम उमरी म आ था। उनका वा वक
नाम डॉ.कुं वर बहादुर स ेना था। उ ने गा ज़याबाद के MMH कॉलेज म ह दी वभाग के मुख के प म काम
कया।
डॉ.'बैचन' ने देश म ही नह ब वदेश म भी ह दी भाषा के गौरवशाली ज को खूब लहराया।अगर उनक श ा
क बात कर तो उ ह ने एम.कॉम के साथ एम.ए ( ह दी) व पी-एच.डी क पढ़ाई क है। वो गा जयाबाद के
एम.एम.एच. महा व ालय म ह ी वभागा के प म अ ापन काय कर चुके ह ।उ
सा ह स ान ( 1977 ), उ० ० ह दी सं ान का सा ह भूषण ( 2004 ), प रवार पुर ार स ान, मुंबई
( 2004 ) जैसे अनेक स ान से नवाजा गया।
डॉ. साब ने अपने जीवन क संघष को अपनी रचनाओं म बख़ूबी उके रा।
उनक मुख रचनाएँ-: पन ब त सारे, भीतर सॉकल : बाहर सॉकल, उव शी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख, एक दीप
चौमुखी, नदी पसीने क , दन दवंगत ए शा मल ह । इसके अलावे शा मयाने कांच के , महावर इंतजार का, र यां
पानी क , प र क बांसुरी, दीवार पर द क, नाव बनता आ कागज, आग पर कं दील आ द अ रचनाएँ भी
शा मल है।
" मलना और बछु ड़ना दोन जीवन क मजबूरी है
उतने ही हम पास रह गे जतनी हमम दूरी है।"