स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
सόरता सरस

बत सरल ह मेरे पता..... कभी-कभी सोचती ं कतने अुत ह.... पर अफ़सोस होता है उस युवा पीढ़ी पर


जनको अपने माता- पता का अनुशासन यंणा लगती है...... मी को बना तराशे घड़ा नह बन


सकता..... लोहे को बना पीटे कोई सुर प नह ले सकता..... एक बेहतर जीवन और एक सुर


बनाने के लए हमारे माता - पता न जाने कतना जतन करते ह.... म मनाती ं दो पीढ़ी के बीच जो खाई है वहां


दत आती है... भावक है..... म ये भी नह कहती क बदलाव जरी नह.... होना चाहए..... ढय


से वोह होना गलत नह... लेकन आपका वोह आपके र से ऊपर नह है..... युवा होने के बाद कतने


बे अपने माता-पता से बत गलत अंदाज म बात करते ह.... कभी सोचा है आपने क आप ा कर रहे


हो..... ा संार दे रहे हो अपनी अगली पीढ़ी को..... असहमत दज करए सानत तरीके से.... समय


दीजए उ... समझने क भी कोशश करए...... बदलाव दोन पीढ़ी को करना पड़ेगा... आप भी कु छ


झुकए....... आपके माता - पता आपके दुन नह है.... ओ हर परत म आपका भला चाहते


ह......जैसे पूरे सृ का रचयता सृ का भला चाहता है वैसे ही आपके अभभावक आपका भला चाहते


ह...... सान नह दे सकते तो कम से कम अपमान ना कर........अपने परवार का.... अपने अभभावक


का सान कर... ेम कर........आपक सारी शा... सारी योता.... सारी सफ़लता के पीछे इ का


संघष और आशीवाद है...... ये घर क नीव ह इ मुरझाने मत दीजए.....


कतने सरल ह मेरे पता 


म अपने पता जी क सरलता पर मु हो जाती ँ.... एक पता सारे झंझावात..... सारी परेशानी..... सब


कु छ झेल लेते ह अपनी पीठ पर जैसे शव ने धारण कया था वष व हत के लए वैसे ही एक पता परवार


हत पी जाते ह हर पीड़ा.......


Ϗपताजी


9807288958

जंगल रसूल पुर नर 2 झंगहा गोरखपुर
(उरदेश)
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