यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
स्ऩरि होता हैं ।

9 21 - 23

ककसान आॊदोरन से आऩके वैऻाननक-

ववश्रेषण की सच्िाई सत्मावऩत होने

के फाद.....अफ जाननमे की देश ककस

टदशा भें आगे फढ़ेगा औय क्मा-क्मा

होगा

देश भें आन्दोरन, प्रदशतन व ववयोध ककसी बी भ


द्दे को

रेकय हो वो रगाताय सोि के ववकलसत होने की टदशा भें

आगे फढ यहे हैं । इस सोि को कैसे ऩकड कय आगे की

सोिा जा सकता हैं उसे सभझा जा सकता हैं ।

10 23 - 24

देश भें आजादी औय असरी रोकतॊि

की स्थाऩना अभमातटदत व

लसद्ाॊतववहीन रूऩ से थोऩी गई

"याजनीनत" के ववनाश बफना सॊबव

नहीॊ....


अफ फात आ यही हैं व्मवस्था की तो ऩहरे इसके

ननभातण व लसद्ाॊत को सभझना जरुयी हैं तबी हभ

उसे अच्छे से सभझ, कभीमों को द


य कय ववकलसत

कय सकते हैं ।

11 24 - 26

साइॊटिकपक एनालरलसस: बायत द्वाया

भॊगर ग्रह की ऩरयक्रभा भें ऩहरा ववभान /

योफोित / उऩकयण स्थावऩत कयने की

ऐनतहालसक उऩरष्ट्धद् ऩय

हभाये ऩास ककस तयह के ववद्वान रोग हैं उ नकी

सोि व ऺभता को एक ऺेि ववशेष की सीभा से

फाहय ननकार अन्म सोि के साथ साभॊजस्म ककमा

जामे तो फह


त क


छ हालसर ककमा जा सकता हैं ।

12

26 - 28

"गणतॊि टदवस ऩय ववशषे "

बायतीम गणतॊि का छ


ऩा सफसे क


रूऩ

िेहया!

कागजी व कान


नी प्रकक्रमा भें हभ श


रू से ही ककस

तयह गरत भागत ऩय बिक जाते हैं वो सफ इससे

सभझा जा सकता हैं |

13 29 - 30

सॊववधान की याख भें ढ


ढने से बी नहीॊ

लभर यहा रोकतॊि!


बायतीम रोकतन्ि की जभीनी स्तय सच्िाई क्मा

हैं वो आऩ इसे आसानी सभझ सकते हैं । बववरम

फनाने के लरए मह सदैव जरूयी होता हैं कक



तकार को ऩहरे सभझ लरमा जामे

14 30 - 33

रोकतॊि ऩय रगा ि


नावी-ग्रहण खत्भ



आ!


आऩको इसके भाध्मभ से आमेगा कक अफ ि


नावों

से लोकतन्ि को भजफ


ती नहीॊ लभर यही हैं अवऩत


उसे धीभा जहय भीर यहा हैं ।


15 33 - 34

रोकतॊि फिाओ के शोयग


र व प्रदशतन

से टदख यहे बववरम के अॊधकाय भें

लसपत एक ही प्रकाश की ककयण है

आऩका वैऻाननक-ववश्रेषण


देश भें हय तयप सबी को फन्द ज


फान भें सभझ

आ गमा हैं कक रोकतन्ि धीये-धीये खत्भ हो यहा हैं


16 34 - 35



ननमा अफ वो ढ


ॊढ यही हैं जो आऩके

वैऻननक-ववश्रेषण ने वषों ऩहरे फता

टदमा |




ननमा के सबी रोकताॊबिक देश भान ि


के हैं कक

रोकतन्ि खतये भें हैं इसे स


धाया जाना मा अऩडेि

कयना जरूयी हैं ।

17 35 - 38

गणिॊत-टदवस ऩय ववशेष....

ववश्व-ग


रु फनने की याह ऩय

बायत.......

हभ वततभान सॊववधान को लभिाने , हिाने मा

फदरने की फात नहीॊ कय यहे अवऩत


उस की

प्रस्तावना व भ


र बावना को जैसे का तैसा फनामे

यखते ह


ए उसे अऩडेि / सभमान




र कयने की फात

कय यहे हैं । हभ िाटहए वारी बाषा ना फोरकय

प्राप्त कयने के भाग तकी रूऩयेखा साभने यख यहे हैं
Free download pdf