स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

रचना वΥशͿ


जीवन डगर के पथक ह हम......

जीवन डगर के पथक ह हम,
चलते रहना ही जीवन है,
कना, पराजय का सूचक,
हम ठहर गये तो,
चुनौतयाँ पथ क,
मुंह हम चढ़ायगी....

टेढ़े-मेढ़े इन र क,
हर चुनौती हम ीकार कर,
पथ मत करे बाधा कोई तो,
क कर थोड़ा सुा लेना,
फर शुआत शू से करना,
एक नयी दशा,एक नये ल क ओर।
हम पथक ह जीवन डगर के ,
कना हमारा काम नह।

हम मील के पर साबत ह,
ऐसा कु छ कर दखलाना है,
झुक नह, टूट भले.....
मंज़ल तक पंच दखाना है।
हम पथक ह जीवन डगर के ,
सांस के अम छोर तक....
बस चलना है नरर ल क ओर।

धूप-छांव या हो झंझावात,
सबको है पार हम करना।
घनघोर अंधेरा हो पथ म,
उजयारे क धूप तो नकलेगी।
यही आस लए मन म,
पथ अपना हम श कर।
जीवन डगर के पथक ह हम...
कना नह पथक, क गये तो,
नत ही ये हार, मौत होगी।

पθथक

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