स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
धानाचाया
राजकय बालका हाई ू ल सोहरामऊ
उाव

डॉ मीनाƶी गंगवार

θसफǢ तु͈η


#सफ तु

सूण सृ के ,
असं चेहरो म
चुना है मेरी आंख ने
सफ तु!
ये नहारत ही नह
समेटत ह तु,
तुारी खुशबू को यं म,
बुनती ह हरपल
तुारे ही !

बैठत ह जब भी,
सपन क ततलयाँ ,
नद के फू ल पर
महसूस होती है मुझे
कमी सफ तुारी!
मन के सरोवर म
हजार कमल के बीच
तैरते है जब हंस,
मन हो जाता है अवभूत,
ृतय म तुारी!

नह चाह सकता
कोई भी तु इतना!
जतना तो तफल
सोचती ं म तु!
नह नकल सकती,
तुारी याद से एक पल भी म,
ाल के हर मोड़ पर
मौजूद होते हो
सफ तुम!

मेरे अंतस क
असीम गहराईय म
मलेग ृतयाँ
तुारे ही अहसास क!
आवाज क!
साज़ क!
और एक नल
अपूण ेमकथा....

नह  हो पात
बेचैनयां मन क
श म!
तमा है..
ए खुदा!
बह जाएं जब भी पघल कर
दद के बादल,
बरसती ह जब भी मरी आंख,
एक बार तो आ जाए नमी सी
आंख म भी उनक! :---
डॉ मीनाी गंगवार
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