9621203470
चं लोक क े ,
इकौना ाव ी (उ )
डॉ संƷा 'ǹगाथ'
डा सं ा ' गाथ '
बड़ी कृ त ँ श क
जो न तांडव करते ह ,
प पात र हत जो अ म न को झ झोड़
सीना तान कर करते ह मन क ।
जो देख रहे ह नय त क उदासीनता
और तमाशबीन खामोश समाज,
मरी ई मानवता के सीने म
उथल पुथल करती संवेदनहीनता ।
इन श ने ही मजबूर कया
कलम उठा म कु छ बोलूँ ,
संवेदनहीन दय के भावनाओं के पट खोलूँ ।
खोलना चाहती ँ उनके मन के ार,
हम देखते ही जनके सीने म वासनाओं के क ड़े र गते
ह
दुम हलाते कु क तरह,
टपकने लगती है मुख से ललचाती लार ।
अरे!सुनो दुरा ाओं मेरा भी दय है,मन है,
म फू ल क तरह खलना चाहती ँ,
म पतंग क तरह उड़ना चाहती ँ,
बहार से मलना चाहती ँ,
नजार को परखना चाहती ँ
तु ारे साथ कदम से कदम मलाने क तम ा है
फर मेरे अध खले बदन को ही देना चाहते हो
नोच?
छीन लेते हो मुझसे मेरे खल खलाने का हक?
मेरी मासू मयत को र दनेवाले,
मेरे पर लग जाते ह तु ारे वचार को
मोच?
कृ तƷ ψँ श̤ν कΫ