स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
बर नगर नदया पम बंगाल (741127)

सώवता धर


ा यह जीत है?या हार? ।।
मानव ही मानव का कर रहा संहार ।
हां यू तो जीत ही है दानवता क मानवता पर।
अस,अाय अधम क हर जगह हो रही है जय।
जीवन मू क कै सी हो रही है, आज पग_पग पर
पराजय।
करा रही ह महान नतयां,
आदश वहीन हो गई है वथयां।
र क धारा बह रही है नरंतर।
नर बल हो रही है दर_दर।
ा यही मानवता उष है?
आत◌ंक छाया है ेक मुख पर । ा यही है
मानवता का तीक?
और ऐतहासक परभाषा?
मन म संजोए ए दुराशा।
गली कू च मे पाट_पाट कर लाशे।
मनशओ क पूण कर रहा है ाशा?
पर एक दन सब क होगी इत -
बत ही चुका अब तो चेतो लोलूप
सु मानव रोक बबर नृशंस तांडव।
होम कर अब वहशीपन को ।

अब तो इϏत कर


पृ संया 14

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