स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
भोपाल मदेश

अचǢना जोशी


बड़े हालात खराब है चलो कु छ कमाई के साधन
ढूंढते ह ,हम शानो म जीवन तलाशते ह

टोकन अब वहां भी मलने लगे ह , चलो अपनी
दुकान
सजाते ह ,
भूख तो वहां भी लगेगी ,जब टोकन नंबर आएगा
तब ही तो लाश जलेगी

लकड़य का धंधा तो सब से से म करते ह
चलो हम एक के पांच वसूलते ह

मानवता तो चीख रही है ,चलो हम लाश भी
नोचते है
सब दूर है ताला बंदी चलो हम शान
लूटते ह

कु छ और नह मले तो चलो लाश के जेवर
खचते ह
लाशे खामोश है शकायत नह करगी
जल जाएगी तो गवाही कहां से देगी

चलो चलो हम तो बस अब बत मजबूर
हो गये है

नोच लाश को अमीर हो गये है

मानवता कΫ मौत

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