हैदराबाद
डॉ संगीता शमाǢ
ज मृ ु पानी सी
तैरती ज़ दगी के कनारे दो
कभी खुशी कभी गम तो
कभी सुकू न कभी उ ीद
क कहानी है जो
कभी ज ोजहद है ज़ दगी
मं जल से बेखबर मं जल तक दौड़
तो कभी खुद मं जल बन जाती है ज़ दगी
कभी कांट से उलझती तो कभी
फू ल फू ल और बहार क पनाह म ज़ दगी
कभी खुशगवार सल सले सी तो
कभी ऊपर वाले क मेहर है ज़ दगी
कभी तेज धूप बन जलाती
कभी मखमली धूप क चाहत
कभी त पश तो कभी चांद क ठंडक
तो कभी बा रश म भगोती ज़ दगी
कभी लरजते आंसू कभी मु ान तो
कभी ब क कलकारी है ज़ दगी
कभी आहत कभी चाहत तो कभी राहत है ज़ दगी
कभी उलझती कभी सुलझती कभी सुलगाती
पता का कं धा मां क गोद तो कभी
ममता के आंचल म छु प जाती ज दगी
य णय के बा पाश म ेम सुधा बरसाती ज़ दगी
ज और मृ ु के बीच म कई खेल खलाती ज़ दगी।
मखमली धूप कΫ चाहत