स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
जला-औरया उरदेश

सुखवधǢन पोरवाल


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ग से सुंदर सपन से ारा, है मेरा ह दुान |
संपूण व म सबसे ारा, है मेरा ह दुान ||
चारय क धरती है , ी राम जैसी मयादा हो
लव कु श जैसे पु जहां पर लण जैसे ाता ह ||
कण जैसे दानवीर जहां पर , बाीक जैसे गु ए
एकल जैसा श जहाँ पर, साथ जहां बु बने
तानसेन का संगीत यहाँ पर , महाराणा जैसी शान है
ग से सुंदर सपन से ारा , यही मेरा ह दुान है |
ली बाई जैसी वीरता जहां ,चाण जैसा ाता हो
हरं का स जहां पर, सीता जैसी माता हो l
मथुरा जैसी पावन नगरी ,अयोा जनका धाम है
भु के चरण म वंदन और, कोट कोट णाम है
ऐसा मेरा ह दुान है.........
ऋषके श सी पावन नगरी ,बाबा के दारनाथ का ार है
गंगा जहां पर बहती है, वह मु धाम हरार है।।
यागराज का कुं भ यहां पर, परमपता का धाम है
सायं काल जब सूय डू बता, तो भगवा होती शाम है
कू ट पवत पर माता वैो का कतना सुंदर धाम है|
जय माता दी बोल के वहां पर ,होती सुबह औ शाम है
मेहंदीपुर बालाजी के चरण म मे सादर णाम है
ग से सुंदर सपन से ारा यह मेरा ह दुान है
ऐसा मेरा ह दुान है............||||
संृ तय क भाषा है यह मेरा ह दुान,
संपूण व म नह मलेगा दूजा ह दुान ||||

भारत दशǢन (मेरा όहέ दुΒान)
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