स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1

अपने मी पापा से महेश का परचय कराया तो उसने दोन के चरणश कए यह देखकर,ा के पापा
हरीश रोगी और मी सुमा रोगी,लेडी़ सब- इंसपेर ने सोचा,कतना संारी लड़का है व ा को
बत खुशी ई।दनदन महेश और ा का ार परवान चढ़ता गया और दोन, मरने जीने क क खाने लगे।
एक दन,महेश अपने बेड़म म ा को आगोश म लए उसके अंग-ंग को चुम रहा था और ा भी उसके
बदन म समाने का यास कर ही थी तभी उसने ा को बर पर लटा दया।महेश ने अपने हठ,ा के गरम
व लरजते होठ पर रख दए और उसके यौवन कपोत को सहलाने लगा और दोन एक दूसरे म समाने का यास
करने लगे व देखते-देखते एक दूसरे म समा गये।


मॅड़म सा ने ा के सर पर हाथ फे रते ए कहा-शाबास बेटी।बदचलन,शराबी और नालायक लड़के के साथ
ऐसा ही सलूक होना चाहए।तुम सावधान रहना यह साहबजादा,सेठ व राजनेता दनेश वालया का बगडैल
इकलौता पु है।
ा अपनी एीवा से पुलस लाईन त ाटर नबंर 12 क ओर चल पडी़।ाटर म ताला लगा
देख,ा अपने आपसे बोली,यह देखो ना तो अभी तक मी आई है और ना ही पापा।यह कहते ए,दरवाजे का
ताला खोल वह भीतर चली गयी।े स होकर वह कचन म चाय बनाने चली गयी।डो़रबेल क कणय आवाज
सुनते ही उसने दरवाजा खोला तो सामने खडे़ अपने मी पापा को देख उसने नाटकय अंदाज म कहा-आइये
आपका ागत है ाईम रपोटर साहब और लेडी़ सब- इंसपेर साहबा और दोन से लपट गयी।
अपने सेवन ार वालया हॉटे के लरी सूट म बैठा महेश पैग पर पैग चढा़ए जा रहा था फर भी
उसका ोध शांत नही हो रहा था।अभी तक उसके झापड़ क गुंज उसके कान म सुनाई दे रही थी।दो कौडी़ क
सब इंसपेर और रपोटर क बेटी क इतनी हत हो गयी क महानगर के सद उोगपत व राजनेता दनेश
वालया के पु पर हाथ उठाए यह कहते ए वह बुदबुदा उठा।वचार करते करते उसक आँखे चमकने लगी और
होठ पर रहमयी मुान खेलने लगी।कोहीनूर कॉलेज के परसर म यही चचा का वषय रहा क महेश अपने
अपमान का बदला कै से लेगा। हर कोई महेश क फतरत से वाकफ था क उसक तशोध क भावना ने कयी
युवतीय और युवक को बबाद कर दया।मासूम सा दखने वाला महेश एक ू र था।इन सब बात से
बेखबर ा अपनी एीवा से आयी और कॉलेज के पोच म खडी़ कर ॉसम क ओर बढ़ गयी और अपनी
सीट पर जा बैठी।मॅड़म सा ने आकर अपनी चेअर सँभाली इतने म मे आय कम इन मॅड़म क आवाज आयी।
उस ओर देखकर मॅड़म अचंभत हो गय।महेश क लाल-लाल सूजी ई आँखे,जैसे रात भर रोता रहा हो और
बखरे ए बाल।वह मॅड़म सा के चरण म गर पडा़ और अपनी बेदगय को ीकार करते ए कहा-मेरा
गुनाह मा के यो तो नही फर भी आप और ा मुझे मा कर दजए अथा यह बोझ लेकर म जी नही
पाऊगाँ और उसने ा के भी पैर पकड़ लए।ा ने उसे उठाया और पानी पलाया।उसने कहा-महेश
बाबू,पाताप के आँसूओं क दो बूँद ने आपके गुनाह को मा कर दया है।इसके बाद महेश का वहार सभी
के साथ पुरी तरह बदल गया।अब वह गंभीरतापूवक पढा़ई म ान लगाने लगा।एा ॉस समा कर,ा
अपनी एीवा के पास आयी तो परेशान हो गयी क उसका पछला चका पंचर था।तभी महेश अपनी कार
से वहाँ आया और पंचर चके को देखते ए कहा-यह ठक हो जाएगा।आप चता ना कर मै आपको घर छोड़ देता
ँ।महेश ने ा को घर के पास उतार दया और कहा-ाजी आपक एीवा आपके ाटर पँच जाएगी।
ा ने कहा-महेश बाबू भीतर आइये,एक एक कप चाय हो जाए,म इलायची वाली चाय बत अी बनाती ँ।
एक शत पर, आप मुझे सफ महेश कहोगी तब ा ने कहा-आप भी मुझे सफ ा कहोगे।ठक है आज से हम
दोन म ए,यह कहते ए महेश ने अपना हाथ आगे बढा़ दया।शी ही ा ने उस हाथ को अपने हाथ म ले
लया और उसके कोमल हाथ को सहलाते ए कहा ा चाय नही पलाओगी।

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