biranishri
(Biranishri)
#1
आगे फढ़कय आदशत प्रस्त
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त कयते है व सॊतो के दशतन हेत
ु
जो सज्जन आते है उनको सभाज की तयप से खाना णखरत े
है तफ उन्हें बी झ
ू
ठा नहीॊ डारने देते है अवऩत
ु
खाने के फाद झ
ू
ठी थारी यखने के स्थान ऩय खड़े यहत ेहै | मटद ववनती
कयने के फाद बी झ
ू
ठा डारे तो स्वम ॊउस झ
ू
ठे खाने को कहते है कपय थारी को यखने देते है |
झ
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ठा डारकय बोजन को फफातद कयने की सभस्मा देश ही नहीॊ वैष्ट्श्वक है | ववशव् भें 113 अयफ िन बोजन प्रनतवष त
फफातद होता है व प्रनतटदन कयीफन 923 राख रोग ब
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खे सोते है | इॊसाननमत व भानवता को ताय ताय कयने वारा कि
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सत्म मह है की प्रनतटदन 35 हजाय फच्िे ब
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ख की वजह से भय जाते है व 87 कयोड़ क
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ऩोषण के लशकाय है | बायत भें
प्रनतवषत 250 लभलरमन (1 लभलरमन = 10 राख) िन (1 िन = 1000 ककग्रा) बोजन का उत्ऩादन होता हा
ष्ट्जसका 40 पीसदी व्मथ त जाता है | ऐसे मटद ऩैसो की बाषा भें सभझे तो 50 - 55 हजाय कयोड़ रुऩमे की फफातदी
कयी जाती है | साभाष्ट्जक यस
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र व स्वम ॊ को सभथ त औय ताकतवय टदखने के प्रनतक फनते जा यहे शादी व अन्म
साभाष्ट्जक उत्सव भें 20 पीसदी बोजन क
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ड़े भें िरा जाता है |
आजकर शादी सभायोह, धालभतक कामो व फड़े फड़े प्रोग्राभो भें कभयो का सपर प्रमोग स
ु
यऺा के लरए फड़ी सॊख्मा भें हो
यहा है | अफ जैन धभत भें खाने के सभम सीसीिीवी कैभया रगाने का वविाय हो यहा है | ऩहरा कैभया बोजन के लरए
खरी फततन रेने के स्थान ऩय व द
ू
सया कैभया बोजन के ऩश्िात झ
ू
ठे फततन यखने के स्तान ऩय |
रोगो को बोजन के लरए खारी फततन रेने के साथ झ
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ठा न डारने का फोरा जामेगा | इसके ऩश्िात बी व्मष्ट्क्त झ
ू
ठा
डारते है तो उनसे एक ननधातरयत श
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ल्क रेकय यशीद काि दी जाएगी | तकनीक के ववकास के कायन भहीने बय से बी
ज्मादा की रयकॉडडगिं को बी देखा जा सकता है | मह श
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ल्क खाने के लरए नहीॊ अवऩत
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खाना फफातद कय के द
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सयो को
ब
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खे यहने के लरए भजफ
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य कयने का अधभत वारा भाग त फनने के लरए लरमा जामेगा | इस वस
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रे गए धन का प्रमोग
कैभयों के यख यखाव, द
ू
सयी सॊस्था व सभाज के ही द
ू
सये शहय की सॊस्था के लरए कैभया प्रफॊध भें खि तहोगा |
जैन धभत के अन
ु
साय प्रनतवषत फारयश के भौसभ भें िौभासे होते है | जहा कयोड़ो रोग एक जगह ठहये सॊतो के दशतन
कयने आते है मटद वे बोजन झ
ू
ठा डारते है तो अप्रत्मऺ रूऩ से साध
ु
साध्वी बी इस ऩाऩ के बागी फन जाते है | इस
कायण सवतश्ेरठ व उच्ि कोटि का प्रस्ताव ििात भें है कक सवतप्रथभ सभाज के भागतदशतक सॊत रोग ऩहरा कदभ उठाम े
औय आने वारे िौभासे उसी स्थान के लरए स्वीकामत कये जहा इस तयह के कैभये रगे होने की व्मवस्था हो | एक फाय
श
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ल्क देने के फाद बी श्द्ार
ु
फाय फाय गरती कये तो सॊत रोग सावतजननक रूऩ से व्मखान भें िॉक सकते है | इसके
फाद बी गरती कये तो सभाज की तयप से एक ऩि उसके घय जाने का बी प्रस्ताव वविायाधीन है औय सफसे अचधक
सहभनत इस फात ऩय फन यही है की सॊत रोग एक सभमावचध के लरए उस ऩरयवाय के घय गोियी के लरए जाना फॊद
कय दे |
जैन सॊतो के दशतन हेत
ु
सबी सभाज के रोग आते है ष्ट्जस कायण सबी धभो के आिामो, धभत ग
ु
रुओ, पकीयो, फाफाओ,
भौरववमो, ऩॊडडतो, ऩ
ु
जारयमों, भठाधीशो आटद के भागत दशतन लरए जा यहे है ताकक उनके धभत एवॊ लसद्ाॊतो की अवेरहना
न हो ऩामे |
श
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रुआत के प्रथभ वषत ही इससे एक कयोड़ से ज्मादा रोग ज
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ड़ जामेगे | इसके ऩश्िात जैन धभत के राखो धालभतक
स्थरों, सॊस्थो, बोजन शाराओॊ, लशऺण केन्रो व धभत शाराओ ऩय आगे फढ़ा जामेगा | इसके ऩरयणाभ के आधाय ऩय