biranishri
(Biranishri)
#1
यारि व भानवटहत भें इस वववाद का सभाधान ननकरना अत्मॊत जरुयी है | अफ लसपत एक भागत फिता है वो है ववऻान
का ऩयन्त
ु
सभस्मा मह है कक इसका लसद्ाॊत बगवान, अल्राह ऩय ववशवास नहीॊ कयता व इनके वज
ू
द को भानता ही
नहीॊ है |
इतने फड़े ववश्रेषण भें सबी ओय से िायो खाने चित होने के फाद लसपत "वैऻाननक-प्रफॊधन" का एकभाि उऩाम फिता है |
मह ववऻान के भ
ू
र लसद्ाॊत बगवान व अल्राह के ना होने को साइड भें यखकय भानाकक, ि
ू
कक को आधाय फना ववऻान
के तयीको से प्रफॊधन कयके भाभरे को स
ु
रझा सकता है |
इसके भाध्मभ से अमोध्मा याभ भॊटदय - फाफयी भष्ट्ज्जद वववाद का उऩाम है ऩयन्त
ु
वततभान भें यखा तो सभझने भें ही
100 वष त से अचधक का सभम रग जामेगा क्मोकक भानवीम सोि व प्रशासननक नैनतकता एवॊ कततव्मफोध इस स्तय के
नहीॊ है |
ववरण
ु
के अवतायों भें ही इसको स
ु
रझाने का उऩाम छ
ु
ऩा है व भ
ु
ष्ट्स्रभ कट्टयता एवॊ अल्राह/ख
ु
दा को बी साथकत कय देता
है | इसके सपर होने का प्रभाण टहन्द
ू
देववमो कक भ
ू
नतमत ों को देखने से ऩता िर जाता है | इन सफके लरए ऩहरे सभम
कक सभझ होना जरुयी है जो हभन े 12 भाित, 2016 के वैऻाननक-ववश्रेषण "“सभम” की सभझ बफना ववकास व आदश त
सभाज असॊबव" भें स्ऩरि कय टदमा था | इसके अॊदय हभने जो लरखा उसके आधाय बफना वववाद उऩाम बी ननयथतक है |
मे राईने है ....
"वततभान की रोकताॊबिक व्मवस्था बी सभम के ग्राप भें वषों ऩ
ु
यानी हो गइ है व इसभें कई फ
ु
याईमाॉ घय फना ि
ु
की है |
इसलरए आदशत ववकास हेत
ु
इसे बी 50 से 100 वषत आगे का सोिकय ववकलसत कयना ऩड़ेगा व धभत आधारयत व्मवस्था
के कई जरूयी लसद्ाॊतों को एक कान
ू
नी, वैिारयक, सवेधननक अचधकाय देकय इसके साथ कड़ी रूऩ भें जोड़ना ऩड़ेगा |"
याभ-याज्म, स
ु
ख-शाॊनत, ववऻान का ताककतक सि, वततभान कक गयीफी, ककसानी ऩीड़ा, भ्रस्िािाय, ब
ु
खभयी, फेयोजगायी, ढोंगी
फाफाओ औय भौरववमों का अऩयाधी झार जैसी कई सभस्माओ को एक साथ साधना जरुयी है क्मोकक मह सफ आस्था व
धालभतक ववशवास से ज
ु
ड़े भ
ु
द्दे है जो िोरी-दाभन की तयह साथ-साथ िरेंगे |
वैऻाननक-ववश्रेषण के भाध्मभ से हभने झ
ू
ठा बोजन डारने को फॊद कयने का उऩाम सबी धभो को एक साथ रेकय टदमा
था बरे ही एक धभत को आधाय भानकय श
ु
रुवात कयी थी | इस द
ु
फाया ऩढ़े आऩको सच्िाई की िभक अऩने िेहये ऩय
नजय आमेगी |
धभत औय ववऻान को एक साथ कैसे वैऻाननक-ववश्रेषण से जोड़ े जात े है व आऩको वैऻाननक-ववश्रेषण "सभम के बॉवय
भें पस गमा जैन-धभत का "सॊथाया" भें देखने को लभर जामेगा | आऩ द
ु
फाया ऩढ़ सकत ेहै |
आज की वास्तववकता की फात कये तो एक लभनि भें एक ईन्सान की अकार भौत हो यही है व उऩाम होते ह
ु
मे बी
यारिऩनत जनता को ऩह
ु
ॊिाने का अॊनतभ ननणतम नहीॊ रे यहे है तो अमोध्मा याभ भॊटदय व फाफयी भष्ट्ज्जद वववाद स
ु
रझाना
द
ू
य के कोड़ी वारी फात है आणऽयकाय ष्ट्जॊदगी फिाना क
ु
छ बी नहीॊ तो ष्ट्जॊदगी जीने का क्मा वज
ू
द हो सकता है |