यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
यारि व भानवटहत भें इस वववाद का सभाधान ननकरना अत्मॊत जरुयी है | अफ लसपत एक भागत फिता है वो है ववऻान

का ऩयन्त


सभस्मा मह है कक इसका लसद्ाॊत बगवान, अल्राह ऩय ववशवास नहीॊ कयता व इनके वज


द को भानता ही

नहीॊ है |

इतने फड़े ववश्रेषण भें सबी ओय से िायो खाने चित होने के फाद लसपत "वैऻाननक-प्रफॊधन" का एकभाि उऩाम फिता है |

मह ववऻान के भ


र लसद्ाॊत बगवान व अल्राह के ना होने को साइड भें यखकय भानाकक, ि


कक को आधाय फना ववऻान

के तयीको से प्रफॊधन कयके भाभरे को स


रझा सकता है |

इसके भाध्मभ से अमोध्मा याभ भॊटदय - फाफयी भष्ट्ज्जद वववाद का उऩाम है ऩयन्त


वततभान भें यखा तो सभझने भें ही

100 वष त से अचधक का सभम रग जामेगा क्मोकक भानवीम सोि व प्रशासननक नैनतकता एवॊ कततव्मफोध इस स्तय के

नहीॊ है |

ववरण


के अवतायों भें ही इसको स


रझाने का उऩाम छ


ऩा है व भ


ष्ट्स्रभ कट्टयता एवॊ अल्राह/ख


दा को बी साथकत कय देता

है | इसके सपर होने का प्रभाण टहन्द


देववमो कक भ


नतमत ों को देखने से ऩता िर जाता है | इन सफके लरए ऩहरे सभम

कक सभझ होना जरुयी है जो हभन े 12 भाित, 2016 के वैऻाननक-ववश्रेषण "“सभम” की सभझ बफना ववकास व आदश त

सभाज असॊबव" भें स्ऩरि कय टदमा था | इसके अॊदय हभने जो लरखा उसके आधाय बफना वववाद उऩाम बी ननयथतक है |

मे राईने है ....

"वततभान की रोकताॊबिक व्मवस्था बी सभम के ग्राप भें वषों ऩ


यानी हो गइ है व इसभें कई फ


याईमाॉ घय फना ि


की है |

इसलरए आदशत ववकास हेत


इसे बी 50 से 100 वषत आगे का सोिकय ववकलसत कयना ऩड़ेगा व धभत आधारयत व्मवस्था

के कई जरूयी लसद्ाॊतों को एक कान


नी, वैिारयक, सवेधननक अचधकाय देकय इसके साथ कड़ी रूऩ भें जोड़ना ऩड़ेगा |"

याभ-याज्म, स


ख-शाॊनत, ववऻान का ताककतक सि, वततभान कक गयीफी, ककसानी ऩीड़ा, भ्रस्िािाय, ब


खभयी, फेयोजगायी, ढोंगी

फाफाओ औय भौरववमों का अऩयाधी झार जैसी कई सभस्माओ को एक साथ साधना जरुयी है क्मोकक मह सफ आस्था व

धालभतक ववशवास से ज


ड़े भ


द्दे है जो िोरी-दाभन की तयह साथ-साथ िरेंगे |

वैऻाननक-ववश्रेषण के भाध्मभ से हभने झ


ठा बोजन डारने को फॊद कयने का उऩाम सबी धभो को एक साथ रेकय टदमा

था बरे ही एक धभत को आधाय भानकय श


रुवात कयी थी | इस द


फाया ऩढ़े आऩको सच्िाई की िभक अऩने िेहये ऩय

नजय आमेगी |

धभत औय ववऻान को एक साथ कैसे वैऻाननक-ववश्रेषण से जोड़ े जात े है व आऩको वैऻाननक-ववश्रेषण "सभम के बॉवय

भें पस गमा जैन-धभत का "सॊथाया" भें देखने को लभर जामेगा | आऩ द


फाया ऩढ़ सकत ेहै |

आज की वास्तववकता की फात कये तो एक लभनि भें एक ईन्सान की अकार भौत हो यही है व उऩाम होते ह


मे बी

यारिऩनत जनता को ऩह


ॊिाने का अॊनतभ ननणतम नहीॊ रे यहे है तो अमोध्मा याभ भॊटदय व फाफयी भष्ट्ज्जद वववाद स


रझाना



य के कोड़ी वारी फात है आणऽयकाय ष्ट्जॊदगी फिाना क


छ बी नहीॊ तो ष्ट्जॊदगी जीने का क्मा वज


द हो सकता है |
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