यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
भामाझार भें भहॉगाई का थोऩना व याजनीनत की छाव भें एक-द


सये ऩय दोषायोऩण कय काभ-िोयी को भजफ


यी फता

जनता को भ्रलभत कय वोि के खेर स ेसता ऩय फैठ जाना |

अफ सफको हिना ऩड़ेगा क्म


ॉकक सॊवैधाननक तौय ऩय देश की भालरक आभ-जनता स्वमॊ आगे आ यही है उसे अफ सयकाय

औय उसके भध्म कई स्वघोवषत प्रनतननचधमों की जरूयत नटह जो याजनीनत के ठप्ऩे, ऩाटितमों के िोरे भें, नेताचगयीॊ की

छाऩ से जहाॊ देखो वहा आकय अऩना उल्र


सीधा कयते है औय कभीशन की िासानी भें भ


ॉह भीठा का भीठा यखते है |

बायत की जनता ने स्वमॊ बफना ककसी क


सी की रारि भें सता के ऩावय के, Y व Z प्रस स


यऺा घेये भें फैठे केवर



फानी गोरा-फारूद फयसामे फीना ववदेश के ख्वाफ को छोड़ अऩन-ेअऩने घय से ही ऩाककस्तान को भ

ुॉ

ह-तोड़ जवाफ दे टदमा

| जो बायतीम-सेना द्वाया एक आतॊकवादी को भ


ठबेड़ भें भाय देने ऩय उसे ननदोष फता कश्भीय फॊद का सावतजननक

ऐरान कय द


सये देश के भाभरे भें अऩनी िाॉग प


सा अॊतययारिीम कान


न को धक्का फता द


सये रोकताॊबिक देशों को बी

ि


नौती दे यहा था |

कई रोगो ने अऩने-अऩने सोलशमर भीडडमा के खाते भें फ्रन्ि इभेज मा ग्र


ऩ के रोगो ऩय बायतीम-सेना का रोगो रगा

उसके कायामा की हौसरा अपसाई कयी |

इस तयह रोगो रगाकय जनता अऩनी-अऩनी भजी फताकय प्रत्मेक यारिीम व सवतटहत के भ


द्दे ऩय हभेशा वोटिॊग कये औय

देश व सयकाय की टदशा एवॊ दशा तम कये, इस तयह की भ


टहभ वऩछ्रे दो वषों के अचधक सभम से िर यही है |

हभन े बी ऐसी "प्रनतऻा" (कवय ऩेज के ऩीछे का बाग) को आगे फढ़ामा व हजायों रोगो को ई-भेर के भाध्मभ से बेजा व

उनके सोलशमर भीडडमा के खाते ऩय िाइभराइन भें ऩोस्ि कया........

इसे एक कदभ आगे फढ़ाते ह


मे पेसफ


क के सॊस्थाऩक द्वाया अऩनी फेिी के जन्भ ऩय अयफों रुऩमे के दान ऩय उनकी ही

ऩोस्ि ऩय प्रश्न रगा? फेिी के असरी सम्भान भें अऩने नेिवकत के भाध्मभ से ऐसी नई श


रुवात की व्मवस्था कयने को

लरखा | आऩ इस प्रनतऻा को द


फाया ऩढ़ें व इसे आगे से आगे फढ़ामे | व्मवस्था को रेकय व ककसी बी काभ भें भजफ


यन

आऩको नीिा देखना ऩड़े, वऩछे हिना ऩड़ े मा ककसी अन्माम को होता देख ्ग


स्सा आमे व अऩने फच्िो के बववरम की

चितॊ ा हो तो इस प्रनतऻा को आऩने सबी लभिो की िाइभराइन भें फाय-फाय डारें ताकक 2 के ग


णाॊक n (जहाॊ n आऩके

लभि के लभिो की सॊख्मा है) की यफ्ताय से आगे फढ़ाकय अऩनी बड़ास को फाहय ननकारे |

...... वप्रम आऩका रेख "प्रनतऻा" (कवय ऩेज के ऩीछे का बाग) फह



त स्ऩष्ि नही है क



ऩमा स



धायकय ऩ



न्




झे बेजे, रेख ऎसा हो ब्द्जसे आसानी से रोग सभझ सके तबी इसका ऩ


या राब सभरेगा - सम्ऩादक


श्ीभान जी, आऩने अऩना अभ


ल्म सभम ननकार के जो ववश्रेषण ककमा उसके लरए फह


त - फह


त आबाय

मह एक पॉयवडत भैसेज ......... हभे रगता है की इसकी बाषा ऩ


णतत मा सही है |

स्क


र की ककताफो एवॊ कॉवऩमों भें ऩीछे की तयप "भेयी प्रनतऻा" छाऩी जाती है (भै बायत का नागरयक ह


....सभस्त

बायतीम भेये बाई - फहन है....) मह उसी बाषा शैरी के आधाय ऩय प्रस्त


त है ताकक जो ऐसे ऩढे वो अऩने आऩ इसस े



ड़ जामे औय वो बी इस भैसेज को आगे फड़ा देश व बफखयते ह


ए रोकतॊि को भजफ


त कयने भै सहमोग कय सके |

आऩ इसे साधायण बाषा भै सभझे: अखफायों भै हभेशा एक यारिीम मा ऺेिीम भ


द्दे ऩय ऩाठको की याम sms के भाध्मभ
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