स्वर्णिम दर्पण

(Kumar dhananjay suman) #1
मला टोला वायरलेस गली
कटहार 854105 (बहार)

संजय कु मार डोकाθनया


म नाण हो गई।।

ातः वंदनीय
धरा ,भूधरा, वसुंधरा ,
मां भुनेरी
सादर नमन
हर परत म साथ खड़ी म
मुझसे वकसत मुझ म समाहत
दमन च क परसीमा
र ई ,लाल लाल म
मानव
तेरे अहम् ने कु नीत चाल चली
मेरे ही वल पर
कु समा गई।
जस आंचल तले अपना अ पाया।
उस आंचल पर ही खंजर चला दए ।
तेरे अपराध क गणना कतनी कं
एक गनती, दूसरी ललकारने लगती ।
ेम ेह से अमृत वषा करती,म
वभ प म मीठे मीठे
अवसर दान करती ।
हरी-भरी अपनी संतान से
सुाद तुझे दान करती।
तेरी उधर ाला को शांत करने
मेरी अ साने भी नल रहती।
तेरे अहम् को संतु नह कर पाए।
म और मेरी धरोहर
तू चाहता ा है? .........
तेरे सवनाश से तुझे बचाने क
मेरी ती इा.......
म ही सवनाश के कगार पर खड़ी हो गई।
माफ करना पु
म नझर नमल नःसहाय हो गई
ान अपना रखना........;
मेरी संपदा तुझ को समपत
म नाण हो गई।।

धरती


पृ संया 21

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