यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1

साइॊटिकपक-एनालरलसस ...... ... - -


"सभम" की सभझ बफना ववकास व आदशष सभाज असॊबव


सभम - सभम होता है उसे सभझने के लरए ब


त, वततभान व बववरम भें फात सकते है ऩयन्त


जीवन के फढ़ते क्रभ भें



म त के प्रकाश से फनते टदन - यात के िक्र भें एक स्थान ऩय रुक एक ग्रन्थ / धभत / भान्मता / वविाय / सभ्मता /

व्मवस्था / जीने-भयने के तयीको को ननधातरयत कय उसे आधाय भानकय खीिते िरे जामेगे तो ऩरयणाभ मही होगा की

सभम तो नहीॊ रुकेगा ऩयन्त


वह फढ़ते वैिारयक, साभाष्ट्जक, व्मवस्था के ववकास भें उरझाकय आगे ननकर जामेगा |

बायत भें आदशत सभाज के ववकास हेत


ऩहरे महाॉ के जानतवाद के तयीकों को सभझना ऩड़ेगा कपय उनभें फन े सभन्वम

को क्मोकक इनके आधाय ऩय ही वततभान भें ऩ


ये सभाज का ढाॉिा फना व टिका है |

आज की "सटहरण


ता औय असटहरण


ता" वारी यारि व्माऩी फहस बी इन जानतगत सभीकयणों के गणणतीम मोग का एक

नैनतक भल्माॊकन कभ याजनैनतक भ


ल्माॊकन ज्मादा है | टहन्द


, भ


स्रभान, जैन, लसख, फ़ायसी, ईसाई, फौद् आटद धभो के

रोग ककसी न ककसी धालभतक भ


द्दे ऩय अऩना योष प्रकि कयने के लरए सड़को ऩय ननकर यहे है | इस े साधायण तौय ऩय

ककसी अन्म धभत/ नेता/जानत/सयकायी राबकायी आदेश का प्रनतउत्तय सभझा जाता है ऩयन्त


इन सबी का भ


र कायण

उस सभम की ऩरयष्ट्स्थनतमों को सभझे बफना आज के सभम ऩय वैसा ही आकरन कय देना है |

धयभ् , व्मवस्थामे, भान्मतामे इन सभम के बॉवयो भें न उरझे इसके लरए एक स्थान ऩय रुक कय जो यिनामे कयी जाती

है उसभे आगे सभावेश का भागत हों जरुयी होता है वह बी स्वतॊिता, नैनतकता, भौलरकता एवॊ ताककतकता के साथ |

ऩहरे इन्शान अकेरा यहता था इसलरए भन की जो भजी ह


ई वही कान


न औय सॊववधान होता था | इसके फाद ऩरयवाय के

रूऩ भें यहने रगा औय जो फड़ा होता था वही ननणातमक व अॊनतभ पैसरा कयने वारा था | जफ ऩरयवायवाद भें धन का

भाध्मभ ज


ॊड़ने रगा तो अचधक कभान े वारा अऩना ननणमत िराने रगा ऩयन्त


फड़े का सम्भान व कततव्म ननबाने के

लरए भेहनत का ह़ आज तक प्रत्मेक ऩरयवाय भें झगड़ ेव वववाद की जड़ है | जहा "वैऻाननक-ववश्रेषण" मानन ताककतक

आधाय ऩय भाभरे लरए जाते है वो ही ऩरयवाय स


खी है औय आगे सही भागत ऩय फढ़ यहा है |

इससे आगे कफीरे, गाॉव, प्रदेश, याज्म व देश फन े औय एक जैसे खाने, ऩीने, यहने व जीने के तयीको से सभाज फना

औय वऩछरे रोगो के जीवन के अन


बवों व ऻान से आगे बववरम भें सही भाग तऩय फढ़ने की ईच्छा व सभझ से कान



व दामये फने ष्ट्जन्होंने सही व गरत के ननधातयण भें "धभत" को जन्भ टदमा | इस प्रकाय आगे फढ़कय कई धभ त के

सभन्वम से व्मवस्था का उदबव ह


आ |

हज़ायो वषो ऩ


वत साभाष्ट्जक व ़ान


नी व्मवस्थामे धभत आधारयत िरा कयती थी | धभत कोई बी हो वह बगवान, भोऺ,



ष्ट्क्त, ऩ


जा-ऩाठ, गरत-सही कभत, ऩ


नजतन्भ, ऩ


वत की भहान आत्भाओ से लभरन के आधाय ऩय साये ननणतम तम होते थे

|

सभम आगे फढ़ गमा औय व्मवस्थाएॉ धालभतकता से आगे ननकर याजाओ के दौय से ग


जय, रोकताष्ट्न्िक ऩरयऩेऺ भें आ

गई व कान


नो, अदारतों, सववधानो, वैिारयक सॊमोजनों व लसयो की सॊख्माओ की चगनती ऩय िर यही है |

टहन्द


यारि, भ


ष्ट्स्रभ देश, यारि धभत ईसाई, जैन-शासन, इस्रालभकवाद, फौद् भागत, मह


दी याज आटद-आटद ब


तकार फन

ि


के है ष्ट्जन्हे ऩढ़ व सभझकय लसपत इन्शानो के ववकास का ऻान रेना िाटहए औय आगे फढ़ना िाटहमे न की वततभान

भें एक-द


सये ऩय थोऩना िाटहए औय ऩ


यानी सोि के आधाय ऩय द


सये धभो की कभी ननकारना िाटहए | तकत औय आज

के सभम के अन


साय गरती ननकारना गरत नहीॊ व द


सयो के फताने ऩय ऩ


याने ऩय टिके यहना व अऩनो भें फदराव न
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