यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
सत्माऩन - अॊतरयऺ ववऻान, सेिेराईि, इसयो की काभमाफी से ज


डी खफय ऩय हभ उसके साथ लरकॊ कयके द


फाया शेमय

कयते यहे हैं ।

यारिीम सोि, जानतगत लभश्ण व आगे क्मा कयने की ऺभता औय हभ ककस टदशा भें जा यहे हैं उसे सभझने के फाद इस


रेख से रोकतन्ि को सभझे ष्ट्जसको हभ प्रनतवषत फथतडे की बाष्ट्त्त गणतॊि टदवस के रूऩ भें फनाते हैं । रोकतन्ि हैं क्मा


औय हभ रोगों को क्मा लभरना िाटहए व लभर क्मा यहा हैं मह सफ इस वैऻाननक-ववश्रेषण के द्वाया आसानी से सभझा


जा सकता हैं । हभ कागजी प्रकक्रमा भें श



रू से ही भात खा जाते हैं ।


साइॊटिकपक-एनालरलसस ...... ... - -


"गणतॊत्र टदवस ऩय ववशेष"


बायतीम गणतॊत्र का छ



ऩा सफसे क



रूऩ चेहया!


प्रत्मेक 365 वे टदन के अॊतयार ऩय हभ गणतॊि-टदवस की फेरा भें यॊग जाते है व एक प्रथा के रूऩ भें अचधकाॊश वही

िीजें/कामक्रत भ दोहयाते है जो वऩछ्रे 365 वे टदन कयी थी | इस क्रभ भें देश के प्रथभ नागरयक यारिऩनत भहोदम का

यारिीम सॊफोधन होता है व ऊऩय से ननि े की ओय फहते यैरे मा ऩानी के स्वबाव के अन


रूऩ प्रधानभॊिी, भॊबिमों,

याज्मऩारों, साॊसदों, ववधामकों, ववबागों के प्रभ


खों से छोिे-छोिे सॊगठनों तक आगे से आगे फधाई देने का लसरलसरा

जरधाया की कल्र कल्र कयती आवाज़ की ध


न के साथ ग


जय जाता है|

इस फधाई के यैरे भें ज


फानो से एक फड़ा भहायेरा ननकरता है जो गणतिॊ की प्रत्मेक फ


याई/कभी/सभस्मा का दोषी

"आभ-जनता" को ठहयाके ही दभ रेता है व प्रत्मेक सवार का एक ही सवार बफना सोिे-सभझे दाग टदमा जाता है ऩहरे

आऩ/जनता तो स


धये देश अऩने आऩ स


धय जामेगा | ष्ट्जस टदन जनता सही उम्भीदवाय ि


नकय बेजेगी उस टदन

सफक


छ सही हो जामेगा | इसे कहत े है अऩनी सयकाय कहने वारों की याजनैनतक ित


याई जो ऩानी को नीिे से उप्ऩय

फहाने की फात कयते है अन्मथा जनता व्मवस्था व फ


याइमों से इतनी तस्ि हो ि


की है की नीिे से उप्ऩय की ओय फधाई

का लसरलसरा श


रु कये तो अगरे 365 वे टदन तक बी बायत के प्रथभ नागरयक तक शामद ही ऩह


िे |

"गण"तन्ि मानन "जन"तन्ि मानन "प्रजा"तन्ि मानन "रोक"तन्ि भें जनता सवोऩरय होती है व उसकी ही सयकाय होती है

ओय जभ


रयमत के ननमभ-कामदे के लरणखत स्वरूऩ "सॊववधान" के अन


साय इस देश के शासक आभ-नागरयक ही है | इस

"नागरयक" की अऩनी सयकाय भें आऩ हैलसमत देखेगें तो ऩामेगे की इस ऩ


यी "डेभोक्रेसी" भें इससे आगे कोई "क


रूऩ-

िेहया" हो ही नहीॊ सकता है | आज डडष्ट्जिर इॊडडमा का ज़भाना कभ ववऻाऩन ज्मादा आगमे हो ऩय इस "क


रूऩ-िेहये" की

कालरख औय ज्मादा फढ़ गई |



ननमा के सफसे फड़ ेरोकतॊि की इस सच्िाई को जानकय आऩको ऐसा आश्िमत होगा की आजादी के फाद आऩने जो बी

सयकायी दस्तावेज, प्रभाण-ऩि, ऩहिान-ऩि फनामे उनकी कारी स्माही बी रज्जा के भाये पीकी ऩड़ जामेगी |

ववयासत के टहॊद


स्तान से रेकय आजतक बायत कभ इॊडडमा ज्मादा के म


ग भें जो अॉगयेजों की ग


राभी के धयातर ऩय

याजा-भहायाजाओ की भानलसकता के तजत ऩय ववकलसत ह


इ प्रजाताॊबिक व्मवस्था भें प्रजा मा जनता ऩ


यी सयकाय भें ककसी

बी स्तय ऩय कागज कामतवाही के लसस्िभ भें नमे फदराव व ववकास का उऩाम सटहत अन


योध / ननवेदन नहीॊ कय सकती
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