biranishri
(Biranishri)
#1
मटद भैं याष्रऩनत होता!
(द
ु
ननमा भें रोकतॊि की आखयी उम्भीद के साथ)
बायतीम सॊववधान के अन
ु
साय देश भें सदैव आभ रोगों की सयकाय फनती है। इसभें यारिऩनत को प्रथभ नागरयक का दजात टदमा जाता है
व दानमत्व के रूऩ भें इसके सॊयऺक के साथ सयकाय का प्रभ
ु
ख भाना जाता है। इन्ही नैनतक कायणों व अचधकायों के परस्वरूऩ मे अऩन े
सम्फोधनों भें "भेयी सयकाय" शधदों का इस्तेभार कयत ेहै।
इस ऩ
ु
स्तक की सोि व नाभ का आधाय सॊववधान के अन
ु
साय िर यही प्राथलभक स्तय की लशऺा है। जहाॉ नई ऩीढ़ी के फच्िों को ऩढ़मा व
ऩयीऺा भें ऩ
ू
छा जाता है कक आऩ देश के यारिऩनत / प्रधानभॊिी / भ
ु
ख्मभॊिी इत्माटद - इत्माटद होते तो क्मा कयते?
बायतीम लशऺा प्रणारी भें याजनैनतक ववऻान (ऩोलरटिकर साइॊस) को ऩढ़ामा जाता है जहाॉ याजनीती को प्रफर भाना जाता है औय
उसके अन
ु
रूऩ व ननणतमों को ववऻान के लसद्ान्तों के आधाय ऩय सत्मावऩत ककमा जाता है, जफकक तकननकी आधाय ऩय लसद्ान्त व
ऩरयकल्ऩना सबी के लरए एक होती है औय उसके अन
ु
रूऩ सफकी व्माख्मा की जाती है। इसी तयह दैननक साभाष्ट्जक जीवन भें
साभाष्ट्जक - अलबमाॊबिकी ( सोशर इॊजीननमरयॊग ) शधदों का प्रमोग होता है, जहा ॉसाभाष्ट्जक घिनाओॊ, यीती रयवाजो व ि
ु
नावी रूऩ से
लरए जानतगत पेसरो को अलबमाॊबिकी (इॊजीननमरयॊग ) के भाध्मभ से अन
ु
क
ू
र फतामा जाता है, जफकक अलबमाॊबिकी (इॊजीननमरयॊग )
के आधाय ऩय साभाष्ट्जक घिनाओ ॊव रम्फी िरी आ यही प्रकक्रमाओॊ / घिनाओॊ मानन यीती रयवाजो को व्माणखत कयना िाटहए की वो
बववरम भें सभाज भें ववकास, उन्ननत मा ववनाश की टदशा भें रे जामेगी।
इसी सोि के नजरयमे से हभ अऩनी अलबव्मष्ट्क्त देते है औय कामत के रूऩ से अन
ु
सन्धान (रयसित) ऺेि से आने के कायण हभायी
अलबव्मष्ट्क्त को वैऻाननक - ववश्रेषण (साइॊटिकपक - एनालरलसस) का िैग देते है। इसी िैग के आधाय ऩय सोलशमर भीडडमा, अखफायों
व ऩि ऩबिकाओॊ भें भेयी प्रनतकक्रमा व बववरम की रुऩयेखा प्रकालशत होती है।
ववऻान के लसद्ाॊत सदैव अऩरयवनततत यहते है जफकक घिनाएॉ फदरती यहती है। इस कायण ककसी बी भ
ु
द्दे ऩय हभायी प्रनतकक्रमाएॉ लसपत
एक फाय ही होती है उसे हभ फदरते नहीॊ है। इस ऩ
ु
स्तक भें हभ अऩने ऩ
ू
यव् के वैऻाननक - ववश्रेषणों को बी इसके शीषतक के अन
ु
रूऩ
आगे - ऩीछे कय सभाटहत कय यहे है। इनकी वास्तववक तायीख व सभम हभाये सोशर भीडडमा ऩय भौज
ू
द है व न्म
ू
ज़ िैनरों, अखफायों,
ऩि ऩबिकाओॊ की कॉवऩमों औय लरॊक से हभायी बववरम को रेकय जो सोि है व सत्मावऩत होती है। इस वजह से हभन ेकई फाय लरखा है
की प्रक
ृ
नत का आशीवातद सदैव वैऻाननक ववश्रेषण की सच्िाई के साथ है जो सदैव इसकी फातो को जभीनी धयातर ऩय राग
ू
मा
ऩरयवनततत कय देती है।
आऩने सदैव ववश्रेषण की रयऩोित मा सॊकलरत भाभरों के ननिे उसको कहाॉ से लरमा गमा है उसकी लरसि् मा स
ू
िी देखी है ऩयन्त
ु
हभाये
वैऻाननक ववश्रेषण भें वो लरस्ि होगी जो फतामेगी की मह लरखने के फाद कफ - कफ जभीनी धयातर ऩय सि साबफत ह
ु
ई। गणणतीम
लसद्ाॊत के अन
ु
साय धनात्भक ग
ु
णा धनात्भक, धनात्भक ( + * + = + ) होता है, धनात्भक ग
ु
णा ऋणात्भक = ऋणात्भक ( + * - = - ),
ऋणात्भक ग
ु
णा धनात्भक = ऋणात्भक ( - * + = - ) होता है व ऋणात्भक ग
ु
णा ऋणात्भक = धनात्भक ( - * - = + ) होता है। हभ
इसी तजत ऩय वैऻाननक ववश्रेषण का एक नमा लसद्ाॊत प्रस्त
ु
त कय यहे है जो कई साये ऋणात्भक (नेगेटिव / नकायत्भक ) से लभरकय
ग
ु
णात्भक व स्िाय ( * ) फनाता है।
हभन ेजो बी फाते व्मवस्था व कामतऩालरका के सन्दबत भें कही है उसे सदैव यारिऩनत भहोदम व प्रधानभॊिी सटहत कई सयकायी ववबागों
को अऩने आववरकय की पाइर के प्रभाणों को आधाय फनाकय बेजी है। इसलरए इस ऩय भ
ू
रप्रनत व कॉऩीयाइि का वववाद ऩैदा नहीॊ हो