यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
जो धयती ऩय जन्भ रेता है वो भयता बी है ऐसी कि


सत्म के साभान प्रत्मेक इन्शान जो कयता है वो ब


तकार के लरए

इनतहास ही फनता है | जो स्वमॊब


फन अऩने काम त को इनतहास कहे, अऩने सॊगठन एवॊ ग्र


ऩ से कहरवा के इनतहास

फनान े की फात कहे, अऩनी ककताफो भें लरखकय इनतहास व बववरम फदरने की फात कय रे वो कबी ऐनतहालसक नही ॊ

होता | मटद अऩनो के आरावा अन्म सबी रोग इसे अरग व सवतटहत का भने व उसे आगे बववरम भें बफना दफाव के

जीवन भें अन


कयण कयने रगे औय अऩनी सॊतानो को ऐसा कयने की लशऺा देने रगे, नमा ऩथ ननभातण कयने रगे जो

सफी के लरए आदशत फन ऩामे उसे ही ऐनतहासोर व म


गननभातण कहत ेहै |

हभें बी सबी ने व्मष्ट्क्तगत स्तय ऩय कहा हभाया सभथत है आऩ कये फस! मही ऩय याजनीती व आगे औय आगे सभम

ननकारकय क


छ न कयने व न कयने देने की इच्छा शष्ट्क्त जायी कय दी | ववश्व रयकॉडत के लरए आचधकारयक िीभ फ


रान े

का अन


योध कोण बेजता, व्मवस्था रे लरए प्रान अन


रूऩ कौन कयवाता व अरग ववशेष कॊिोर जगह, ऩॊडार, कैभया,

बोजन व्मवस्था, स


यऺा,केिस त को जानकायी व सभन्वम कौन कयता | हभ तो क्मा कोई बी नहीॊ कय ऩाता क्मों की

उसको कयने का को अचधकाय व उत्तयदानमत्व ननबाने की सावतजाननक, लरणखत, प्राभाणणक जवाफदेही ही नहीॊ दी जा यही

थी |

जैन धभत के अन


साय हभ आिामत, सबी सॊतो सधववमो, श्भण सॊघ की यारिीम काॊफ्रेंस के सबी सदस्मों से ऺभा िाहते है

की हभने उनसे कयोडो रोगो व फच्िो ब


ख, क


ऩोषण के लशकाय होकय भये नहीॊ इस हेत


उनसे उम्भीद रगाकय, ऩि

बेजकय, फ़ोन कयके, लभरकय उनका अभ


ल्म सभम फफातद कया | हभाये सभम व खित का क्मा उसे तो वो श्वेताम्फय

स्थानकवासी जैनी के सभाज भें जन्भ के फाद फड़े होने का श


ल्क सभझते यहे | हभ सभझ यहे थे की आज के सॊत ख





ठा ऩड़ने के भ


र भाध्मभ फनके अधभत से अऩने आऩ को ऩाऩ कभत से भ


क्त कयेंगे ऩय हभें क्मा भार


भ उन्हें इस काभ

के लरए भहावीय स्वाभी आशीवातद ही नहीॊ दे यहे थ े मा व े स्वमॊ भहावीय स्वाभी फनके उनके साभान आगे बववरम के

लरए "अटहॊसा द


त" बेज यहे थे |

हभ सबी ऩदाचधकारयमों ष्ट्जनके ऩीछे ऩद, भॊिी व आगे यारिीम अरॊकयण िस्ऩा है उनसे बी ऺभा िाहते है की हभ

उनके भोऺ भागत, सदगनत के भागत फनाने के कामत भें फढ़ा ऩैदा कय यहे थे | हभ ब


ख, गयीफो को खाना ऩह


िने का भाग त

फना यहे थे | मटद ऐसा हो जाता तो मे रोग बववस्म भें यह ही नहीॊ ऩाते, अन्न फफातद होने से फि जाता तो कपय अन्न

की देवी अन्नऩ


णात को ऩ


जता कौन व रोगो को आशीवातद लभरता कैसे? ब


खे, गयीफ, क


ऩोवषत रािाय रोग यहते तो मह

ककसे दान, बीख देकय जैन धभत के अन


साय भोऺ प्राप्त कयते | हजायो साध


साध्वी नए नए अववरकायों, स्िॊि, राभा,

कपल्भो, सीरयमरों के भध्म योज घॊिो प्रविन भें ब


खो, गयीफो को खाना णखराओ के आरावा उऩदेश देते क्मा? मटद

सबी बय ऩैि खाना खा रेते तो धभत कभत औय बजन बी ज्मादा कयते औय उन्हें बगवान दशतन व भहावीय स्वाभी के

सभान केवर-ऻान दे देते तो उल्िा इनका अष्ट्स्तत्व ही सॊकि भें ऩड़ जाता |

हभ अऻानी है, ना सभझ है जो इॊियनेि ऩय आऩ जैसे सेकड़ो रोगो के राइको व कभेंि को सि सभझकय कहर ऩड़ े

मह कोई रोकतॊि के वोि थोड़ी है जो आऩने घॊिो राइन भें खड़े यहकय अॊग


री के नाऽ


न ऩय कारा दाग रगाकय डारे थे

| हभ आज के भहावीय फथतडे ऩय ऩािी से फड़े फड़ े प्रोग्राभ कयने वारो की तयह आऩके कभेंि व ववश्वाश को कॊप्म


िय

वारी इरेक्िॉननक फैरेंस से तोर नहीॊ ऩामे | हभने ऩैसा इनस ेसॊऩकत, लभरन, े ऩि व्मवहाय, अन


योध, फड़ो के सम्भान भें

खित कय डारा मटद इसकी जगह इनकी जैसी तयाज


रे रेते तो आज सावतजाननक रूऩ से ऺभा मािना नहीॊ कयनी ऩड़ती

|

अत्: श्ी बगवान भहावीय उऩदेश कथा!

लसपत कथा स


नाओ, फताओ, छाऩो, फेिो, यैरी ननकारो फस उसका अन


सयण भत कयो.........
Free download pdf