biranishri
(Biranishri)
#1
जो धयती ऩय जन्भ रेता है वो भयता बी है ऐसी कि
ु
सत्म के साभान प्रत्मेक इन्शान जो कयता है वो ब
ू
तकार के लरए
इनतहास ही फनता है | जो स्वमॊब
ू
फन अऩने काम त को इनतहास कहे, अऩने सॊगठन एवॊ ग्र
ु
ऩ से कहरवा के इनतहास
फनान े की फात कहे, अऩनी ककताफो भें लरखकय इनतहास व बववरम फदरने की फात कय रे वो कबी ऐनतहालसक नही ॊ
होता | मटद अऩनो के आरावा अन्म सबी रोग इसे अरग व सवतटहत का भने व उसे आगे बववरम भें बफना दफाव के
जीवन भें अन
ु
कयण कयने रगे औय अऩनी सॊतानो को ऐसा कयने की लशऺा देने रगे, नमा ऩथ ननभातण कयने रगे जो
सफी के लरए आदशत फन ऩामे उसे ही ऐनतहासोर व म
ु
गननभातण कहत ेहै |
हभें बी सबी ने व्मष्ट्क्तगत स्तय ऩय कहा हभाया सभथत है आऩ कये फस! मही ऩय याजनीती व आगे औय आगे सभम
ननकारकय क
ु
छ न कयने व न कयने देने की इच्छा शष्ट्क्त जायी कय दी | ववश्व रयकॉडत के लरए आचधकारयक िीभ फ
ु
रान े
का अन
ु
योध कोण बेजता, व्मवस्था रे लरए प्रान अन
ु
रूऩ कौन कयवाता व अरग ववशेष कॊिोर जगह, ऩॊडार, कैभया,
बोजन व्मवस्था, स
ु
यऺा,केिस त को जानकायी व सभन्वम कौन कयता | हभ तो क्मा कोई बी नहीॊ कय ऩाता क्मों की
उसको कयने का को अचधकाय व उत्तयदानमत्व ननबाने की सावतजाननक, लरणखत, प्राभाणणक जवाफदेही ही नहीॊ दी जा यही
थी |
जैन धभत के अन
ु
साय हभ आिामत, सबी सॊतो सधववमो, श्भण सॊघ की यारिीम काॊफ्रेंस के सबी सदस्मों से ऺभा िाहते है
की हभने उनसे कयोडो रोगो व फच्िो ब
ू
ख, क
ु
ऩोषण के लशकाय होकय भये नहीॊ इस हेत
ु
उनसे उम्भीद रगाकय, ऩि
बेजकय, फ़ोन कयके, लभरकय उनका अभ
ू
ल्म सभम फफातद कया | हभाये सभम व खित का क्मा उसे तो वो श्वेताम्फय
स्थानकवासी जैनी के सभाज भें जन्भ के फाद फड़े होने का श
ु
ल्क सभझते यहे | हभ सभझ यहे थे की आज के सॊत ख
ु
द
झ
ू
ठा ऩड़ने के भ
ू
र भाध्मभ फनके अधभत से अऩने आऩ को ऩाऩ कभत से भ
ु
क्त कयेंगे ऩय हभें क्मा भार
ू
भ उन्हें इस काभ
के लरए भहावीय स्वाभी आशीवातद ही नहीॊ दे यहे थ े मा व े स्वमॊ भहावीय स्वाभी फनके उनके साभान आगे बववरम के
लरए "अटहॊसा द
ू
त" बेज यहे थे |
हभ सबी ऩदाचधकारयमों ष्ट्जनके ऩीछे ऩद, भॊिी व आगे यारिीम अरॊकयण िस्ऩा है उनसे बी ऺभा िाहते है की हभ
उनके भोऺ भागत, सदगनत के भागत फनाने के कामत भें फढ़ा ऩैदा कय यहे थे | हभ ब
ू
ख, गयीफो को खाना ऩह
ु
िने का भाग त
फना यहे थे | मटद ऐसा हो जाता तो मे रोग बववस्म भें यह ही नहीॊ ऩाते, अन्न फफातद होने से फि जाता तो कपय अन्न
की देवी अन्नऩ
ू
णात को ऩ
ू
जता कौन व रोगो को आशीवातद लभरता कैसे? ब
ू
खे, गयीफ, क
ु
ऩोवषत रािाय रोग यहते तो मह
ककसे दान, बीख देकय जैन धभत के अन
ु
साय भोऺ प्राप्त कयते | हजायो साध
ु
साध्वी नए नए अववरकायों, स्िॊि, राभा,
कपल्भो, सीरयमरों के भध्म योज घॊिो प्रविन भें ब
ू
खो, गयीफो को खाना णखराओ के आरावा उऩदेश देते क्मा? मटद
सबी बय ऩैि खाना खा रेते तो धभत कभत औय बजन बी ज्मादा कयते औय उन्हें बगवान दशतन व भहावीय स्वाभी के
सभान केवर-ऻान दे देते तो उल्िा इनका अष्ट्स्तत्व ही सॊकि भें ऩड़ जाता |
हभ अऻानी है, ना सभझ है जो इॊियनेि ऩय आऩ जैसे सेकड़ो रोगो के राइको व कभेंि को सि सभझकय कहर ऩड़ े
मह कोई रोकतॊि के वोि थोड़ी है जो आऩने घॊिो राइन भें खड़े यहकय अॊग
ु
री के नाऽ
ू
न ऩय कारा दाग रगाकय डारे थे
| हभ आज के भहावीय फथतडे ऩय ऩािी से फड़े फड़ े प्रोग्राभ कयने वारो की तयह आऩके कभेंि व ववश्वाश को कॊप्म
ू
िय
वारी इरेक्िॉननक फैरेंस से तोर नहीॊ ऩामे | हभने ऩैसा इनस ेसॊऩकत, लभरन, े ऩि व्मवहाय, अन
ु
योध, फड़ो के सम्भान भें
खित कय डारा मटद इसकी जगह इनकी जैसी तयाज
ू
रे रेते तो आज सावतजाननक रूऩ से ऺभा मािना नहीॊ कयनी ऩड़ती
|
अत्: श्ी बगवान भहावीय उऩदेश कथा!
लसपत कथा स
ु
नाओ, फताओ, छाऩो, फेिो, यैरी ननकारो फस उसका अन
ु
सयण भत कयो.........