यदि मैं राष्ट्रपति होता!

(Biranishri) #1
हय धभत भें फदराव का एक भागत अवश्म होना िाटहए ष्ट्जससे सभम के साथ साभन्जस्म स्थावऩत हो सके | सभम के

एक टहस्से ऩय ठहयाव अऩने आऩ ही ऩीछे कय देता हैं । धालभतक कट्टयता, टहॊसा, भन-भ


िाव, छ


आछ


त, बेदबाव आदी

साभाष्ट्जक फ


याईमाॊ इसी ऩीछडेऩन का प्रनतपर फनती हैं ।

साइॊटिकपक-एनालरलसस ...... ... - -


सभम के बॉवय भें पस गमा जैन-धभष का "सॊथाया"


खफय: - सॊथाये को रेकय याजस्थान हाईकोित व उच्ितभ न्मामारम के आदेशो के भध्म झ


रा जैन-सभ


दाम का

भौन ज





सभम - सभम होता है उसे सभझने के लरए ब


त, वततभान व बववरम भें फात सकते है ऩयन्त


जीवन के फढ़ते क्रभ भें



म त के प्रकाश से फनते टदन - यात के िक्र भें एक स्थान ऩय रुक एक ग्रन्थ / धभत / भान्मता / वविाय / सभ्मता /

व्मवस्था / जीने-भयने के तयीको को ननधातरयत कय उसे आधाय भानकय खीिते िरे जामेगे तो ऩरयणाभ मही होगा की

सभम तो नहीॊ रुकेगा ऩयन्त


वह फढ़ते वैिारयक, साभाष्ट्जक, व्मवस्था के ववकास भें उरझाकय आगे ननकर जामेगा |

साभान्तमा: सबी धभो के साभान ही जैन-धभत का "सॊथाया" बी इसी बॉवय भें उरझ गमा | धभत, व्मवस्थामे, भान्मताम े

इन सभम के बॉवयो भें न उरझे इसके लरए एक स्थान ऩय रुक कय जो यिनामे कयी जाती है उसभे आगे सभावेश का

भागत हों जरुयी होता है वह बी स्वतॊिता, नैनतकता, भौलरकता एवॊ ताककतकता के साथ |

"सॊथाया" मानन जैन अन


मामी द्वाया इस जन्भ को छोड़ द


सयी मोनन मा भोऺ भें जाने का भाग त जहा अन्न, जर सबी

त्माग के साॊसारयक भोह-भामा से भ


क्त होने का आष्ट्त्भक व फौवद्क आत्भववश्वाश प्रकि कया जाता है |

हज़ायो वषो ऩ


वत साभाष्ट्जक व ़ान


नी व्मवस्थामे धभत आधारयत िरा कयती थी | धभत कोई बी हो वह बगवान, भोऺ,



ष्ट्क्त, ऩ


नजतन्भ, ऩ


वत की भहान आत्भाओ से भीर जाना इत्माटद के आधाय ऩय उद्भव ह


आ कयते थे | इसलरए जर-

सभाधी, ब


लभ-सभाधी, धालभतक स्थरों ऩय जीवन त्माग, श्वाश योक आत्भीम लभरन, अकल्ऩनीम प्राक


नतक घिनाओ स े

देह त्माग साथतक भाने जाते यहे है |

सभम आगे फढ़ गमा औय व्मवस्थाएॉ धालभतकता से आगे ननकर याजाओ के दौय से ग


जय, रोकताष्ट्न्िक ऩरयऩेऺ भें आ

गई व कान


नो, अदारतों, सववधानो, वैिारयक सॊमोजनों व लसयो की सॊख्माओ की चगनती ऩय िर यही है | टदन-प्रनतटदन

फढ़ते ववऻान के दामये भें जहा ऩ


नजतन्भ, भोऺ को कान


न वैध नही ॊ भाना जाता वह इन्शान द्वाया अन्न-जर त्माग

जीवन से भ


क्त होना आत्भहत्मा कहराता है | इसी ऩरयष्ट्स्थनत भें "सॊथाया" तो पसना ही था |

जैन-सभाज के रोगो ने राखो की सॊख्मा भें ननकर कय एकता व वषो ऩ


वत ननधातरयत आदशो भें अऩना ववश्वाश जतामा

वो ऩ


णततमा सही है ऩयन्त


कपय "सभम" को नजयअदॊ ाज कयते ह


मे बववरम के िकयाव व अन्म धभत के वैिारयक ववषभता

के अॊधे क


ॉए की दहरीज ऩय आ गए | जहाॉ नघनोनी व वोि वारी याजनीती भें ऩीस जाने की सम्बावनामे ज्मादा है |
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